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मनुष्य जीवन की सार्थकता

मनुष्य जीवन की सार्थकता  ,अपना  निज स्वारुप का ज्ञान पाने में हँ अर्थात "मैं कौन हूँ  " का वास्तविक परिचय है । आप कहाँ  रहते हैं कहाँ रहना चाहिये इसका कोई मूल्य नही है ,मूल्य है आप स्वयं का ज्ञान पाने में अभ्यस्त हँ य़ा नही । इस शरीर को तो एक दिन जला या गड़ा दिया जायेगा  ,उससे पहले इस शरीर के अंदर एक अशरीरधारी का अनुभव हो जाए । हम केवल बीज ही रहकर न रह जाएं  वृक्ष वनना हमारा उद्देश्य रहना चाहिए । बीज के अंदर वृक्ष छिपा है उसी तरह मनुष्य शरीर के अंदर परमात्मा छिपा है ,बस बीज की तरह उसे ध्यान अभ्यास का खाद पानी देने की निरंतर आवाश्यकता है फिर एक दिन  विशाल  वृक्ष [ परमात्मा ] हो जायेगा ॐ